आज से 50 वर्ष पूर्व लोकतांत्रिक मूल्यो इंदिरा गांधी ने किया था सीधा हमला
PRATAPGARH NEWS: उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का उड़न खटोला पुलिस लाइन ग्राउंड बुधवार को उतारा जहां भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका गर्म जोशी के साथ स्वागत किया। उपमुख्यमंत्री ने पुलिस लाइन ग्राउंड में मां के नाम कार्यक्रम के तहत एक पौधा रोपण किया। पुलिस लाइन के साई कंपलेक्स में प्रेस वार्ता में सम्मिलित हुए। आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर हादीहाल में आयोजित एक गोष्ठी को संबोधित किया। साथ ही विकास भवन में अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। बताते चले कि 25 जून को देशवासी एक काले दिन के रूप में देखते है। तो वहीं देश व प्रदेश में भाजपा की सरकार 25 जून को अपातकाल का कला अध्याय वाला दिन मानती है। इसी लिए आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर बुधवार को प्रदेश सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने पत्रकार वार्ता की। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि आज के दिन 50 वर्ष पूर्व इंदिरा गांधी की तानाशाही देखने को मिली थी। अपने स्वास्थ्य वस उन्होंने देश में आपातकाल लगाया था। 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आंतरिक अशांति का बहाना बनाकर देश पर आपातकाल ठोक दिया था। जबकि यह निर्णय किसी युद्ध या विद्रोह के दौरान लिया जाता है। लेकिन उन्होंने अपने लिए चुनाव को रद्द किए जाने तथा सत्ता बचाने की हताशा में फैसला लिया। जो बिल्कुल दुर्भाग्यपूर्ण रहा। कांग्रेस पार्टी ने इस काले अध्याय में न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं को रौंदा बालकान पेश की स्वतंत्रता न्यायपालिका की निष्ठा और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचल कर या स्पष्ट कर दिया कि जब उनकी सत्ता संकट में होती है तब वह संविधान और देश की आत्मा को ता पर रखने में पीछे नहीं हटे। आगे उन्होंने कहा कि आज 50 वर्ष बाद भी कांग्रेस इस मानसिकता के साथ चल रही है। आज भी वैसी ही तानाशाही वाली है। डिप्टी सीएम ने बताया कि 8 मई 1947 को जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में ऐतिहासिक रेल हड़ताल ने पूरे देश को जकड़ लिया आंदोलन को रोकने के लिए 1974 में गुजरात में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। यही राष्ट्रपति शासन 1975 में लगाने वाले आपातकाल की एक शुरुआत थी। जब बिहार में कांग्रेस सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा और 1975 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करी हर का सामना करना पड़ा। गुजरात की जनता ने कांग्रेसियों के आपातकालीन व्यवस्था को करारा जवाब दिया था। यही नहीं 12 जून 1975 को हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में दोषी ठहराया। साथ ही उन्हें 6 वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर रहने से आरोग्य करार दिया। इस फैसले से घबराकर इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आंतरिक अशांति का हवाला देकर राष्ट्रपति से आपातकाल लगता दिया। रातो रात प्रिंटिंग प्रेस की बिजलियां काट दी गई विपक्ष के नेताओं को बंदी बनाकर 26 जून की सुबह देश को तानाशाही की सूचना रेडियो के माध्यम से दी गई। जबकि अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग कर कांग्रेसियों ने लोकतंत्र को रौंदा था। केशव प्रसाद में आगे बताया कि इंदिरा गांधी यही तक नहीं रुकी। इंदिरा गांधी ने निशा जैसे काले कानून के जरिए एक लाख से अधिक नागरिकों को पीना किसी मुकदमे के जिलों में ठोक दिया जिसमें जयप्रकाश नारायण अटल बिहारी वाजपेयी लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी राजनाथ सिंह सहित तमाम विपक्षी नेता व पत्रकार शामिल थे। इंदिरा गांधी ने अपने हितों के लिए सरकार ने 38 वें संशोधन के तहत आपातकाल की घोषणा न्यायपालिका की जांच से बाहर कर दिया था। इन मनमाने संशोधनों के तहत इंदिरा गांधी ने सीधे-सीधे तानाशाही के लिए रास्ता खोल दिया था। 39वें और 42 वां जैसा क्रूर और आलोक तांत्रिक संशोधन किया जिसके तहत प्रधानमंत्री और अन्य शीश पदों पर नायक समीक्षा से परे कर दिया जाए ताकि इंदिरा गांधी को अदालत में घसीटा न जा सके। आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार ने आरएसएस जनसंघ एबवीपी शहीद कई अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर या सिद्ध कर दिया था कि वह किसी भी विरोधी स्वर को बर्दाश्त नहीं कर सकती। जनसंघ और आरएसएस ने उसे कालखंड के दौरान भूमिगत रहकर पूरे देश में सत्याग्रह कर परिचय वितरित कर कर सूचना के माध्यम से कांग्रेस की तानाशाही को उजागर करने का काम किया था। जो संविधान बाबा साहब अंबेडकर ने जनता को अधिकार देने के लिए बनाया था उसी को हथियार बनाकर जनता के अधिकारों को छीन लिए। इंदिरा गांधी के आपातकाल के 21 महीनों मैं कांग्रेस ने हर आलोचक हर सहमति और हर विपक्ष विचारों को देश द्रोह का तमगा देकर कुचल डाला। आज देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे समय साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे। उनके जैसा लाखों समर्पित स्वयंसेवकों ने रातों-रात रेलवे में पर्चे बटवाए, संदेश पहुंच जाए और कांग्रेस की सच्चाई हर गांव और गली तक पहुंचाई। कांग्रेस की तानाशाही का विरोध केवल राजनीतिक ही नहीं था या भारत की आत्मा की रक्षा का आंदोलन था जिसमें राष्ट्रवादियों ने जान की बाजी लगा दी थी। कांग्रेस ने लोकतंत्र के साथ इतना बड़ा विश्वास घात किया लेकिन आज भी वह अपने किए के लिए ना तो माफी मांगती है ना ही पछतावा प्रकट करती है आज संविधान बचाओ का नारा देने वाली वहीं कांग्रेस पार्टी जिसने संविधान को बेरहमी से आज के 50 साल पूर्व रोता था। आपातकाल गांधी परिवार की उसे सोच को परिचायक था जिसमें स्पष्ट हो गया था कि उनके लिए पार्टी और सट्टा परिवार के लिए ही होती है देश और संविधान के लिए नहीं। आज कांग्रेस में चेहरे बदल गए हैं लेकिन तानाशाही की प्रवृत्ति और सट्टा का लोग जस का तस के है। 50 वर्ष के बाद आज आपातकाल को याद करना इसलिए आवश्यक है कि क्योंकि यह इतिहास की एक घटना मात्रा नहीं बल्कि कांग्रेस की मानसिकता का प्रमाण भी दर्शाती है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद ने आगे कहा कि आप देश की सत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में है देश के हितों में फैसला लेती है जो कांग्रेस को पसंद नहीं आ रही उन्होंने बताया कि न्यायपालिका में हस्ताक्षे पी फ्री स्पीच के नाम पर अराजक्ताओं और मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देकर कांग्रेस आज नए तरीके से वही आपातकाल लागू करना चाहती है जिन संस्थाओं को लोकतंत्र का रक्षक रहती है उन्हें संस्थाओं को अपने शासन में रबर स्टैंप बना देती है यह दोहरा पान आज भी उसकी राजनीति में स्पष्ट दिखाई देता है। भ्रष्टाचार के मामले में जब भी गांधी परिवार पर जांच आती है कांग्रेस के लोग लोकतंत्र खतरे में है की बात कह कर शोर मचाने लगते हैं याद कीजिए या भाषा इंदिरा गांधी ने अदालत से आयोग घोषित होने के बाद अपनाई थी। जब जब कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया गया है उसने ना जनादेश को सम्मान किया ना विपक्ष की गली में बनाए रखी वह आज भी लोकतंत्र को तभी मानती है जब कुर्सी उसके पास होती है।