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महर्षि आश्रम, संगम तट, अरैल प्रयागराज में महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव का दिव्य आयोजन

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इरफान खान
Prayagraj..परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती को महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव हेतु विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। प्रकृति की अनन्त धारा में निरंतर प्रवाहित होते हुए, भारतीय संस्कृति ने हमेशा से मानवता के हित में अपने असीमित ज्ञान का विस्तार किया है। भारतीय संस्कृति और परम्पराएं पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं।
महर्षि आश्रम, संगम तट, अरैल प्रयागराज में आयोजित होने वाला महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव भारतीय संस्कृति, योग, ध्यान, और वैदिक परम्पराओं को आत्मसात करने का दिव्य अवसर है। महर्षि ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन ब्रह्मचारी गिरीश को स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि आप पूरे भारत में एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस, विप्रवंृद और संस्थाओं के माध्यम से महर्षि चेतना को जागृत कर रहे हैं।
महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव का आयोजन महर्षि आश्रम, संगम तट अरैल द्वारा किया गया। इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति समग्र मानवता के कल्याण और सार्वभौमिक दृष्टिकोण पर आधारित है।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति, जिसका आधार प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ एकता पर आधारित है। भारतीय संस्कृति की जड़ें सदियों पुरानी हैं, और इसकी शक्ति और महिमा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह जीवन के हर पहलू को दिव्यता और सत्य से जोड़ने का प्रयास करती है।
भारतीय संस्कृति, प्रकृति को केवल एक संसाधन के रूप में नहीं देखती बल्कि इसे एक जीवंत शास्त्र मानती है। जिसे समझने और महसूस करने की आवश्यकता है। प्रकृति का हर तत्व ब्रह्म के अद्वितीय रूप का प्रतिबिंब है। प्रकृति से हम केवल भौतिक रूप से नहीं जुड़े हैं, बल्कि यह हमारी आत्मा और चेतना का भी एक अभिन्न हिस्सा है। प्रकृति से जुड़ने का अर्थ केवल वृक्षारोपण या जल संरक्षण करना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि हम जो कुछ भी हैं, वह प्रकृति के बिना कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति का संरक्षण मानवता का संरक्षण है। जब हम प्रकृति का सम्मान करेंगे, तभी हम अपने जीवन के उद्देश्य और दिशा को समझ पाएंगे। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी देखा जाता है। आये श्रद्धालुओं और मातृशक्तियों का स्वामी चिदानंद ने अभिनंदन किया।