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दिखाई देते हैं रौज़े हुसैन के घर घर यजीद तेरा तो एक टूटा मजार भी नहीं

प्रयागराज। दायरा शाह अजमल कच्ची हवेली में मरहूम कस्टम आफीसर सय्यद नूह रिज़वी के आवास पर करबला के शहीदों पर पांच सफ़र को एक मजलिस हुई जिसमें सोज खुवान जैगम अब्बास,अलमदार काजमी, और हैदर मेंहदी ने मर्सिया पढ़ते हुवे इमाम हुसैन को पुरसा पेश किया और अंजुमन गुनचए कासिमिया बख्शी बाज़ार प्रयागराज ने सीना जनी करते हुवे करबला के शहीदों को पुरसा पेश किया मौलाना अख़्तर हसन रिज़वी ने खिताब करते हुवे रसूल अल्लाह के नवासों पर रौशनी डालते हुवे बताया की करबला में जो जंग हुई वो हक और बातिल की जंग थी एक तरफ यजीद था जिसके साथ लाखों की फौज थी जो हराम कामों पर यजीद के साथ खड़ी थी और दूसरी तरफ रसूल अल्लाह का वो नवासा था जिसपर रसूल नाज़ करते थे इधर सिर्फ बहत्तर वफादार साथी थे जो हक़ के साथ थे यजीद अत्याचार करता रहा और हुसैन सब्र करते रहे इमाम हुसैन ने करबला की जंग में एक बड़ी कुर्बानी दे कर इस्लाम को बचा लिया आज इस्लाम जिंदा है तो ये इमाम हुसैन का बलिदान है हुसैन ने सब्र कर के दुनिया को बता दिया की देखो तुम्हारे ऊपर चाहे जितनी मुसीबतें आएं तुम कभी हक़ का दामन न छोड़ना यही वजह है करबला में यजीद लाखों की फौज रखता था हुकूमत करता था लेकिन आज चौदह सौ साल बाद भी यजीद पर दुनिया का हर इंसान लानत भेजता है और उसको बुरा कहता है यजीद की इससे बड़ी शिकस्त और क्या होगी की खुद यजीद के बेटे ने तख्त पर बैठने से ये कह कर इनकार कर दिया की मुझे ऐसा तख्त नहीं चाहिए जिस पर इमाम हुसैन के खून के निशान हों जिस तख्त के पाए खूने हुसैन में डूबे हों ऐसे तख्त पर लानत हो यजीद का बेटा खुद अपने ज़ालिम बाप पर लानत भेजता था आप को बताते चलें की शिया हजरात दो महीने आठ दिनों तक करबला के शहीदों का गम मनाते हैं ये मजलिस मोहर्रम के पांच सफर की अलविदाई मजलिस थी जो कदीमी मजलिस है सय्यद नूह रिज़वी की मृत्यु के बाद अब उनके पुत्र सय्यद मोहम्मद मेंहदी उर्फ़ फैजी करवाते हैं अब मात्र दो दिन मोहर्रम सफ़र के बचे हैं 12 सितंबर को करबला के शहीदों पर अल्वीदाई जुलूस के साथ मोहर्रम अगले वर्ष तक के लिए समाप्त होगा चौदह सौ साल पहले करबला में रसूल अल्लाह के नवासे ने जो कुरबानी पेश की है उसे दुनिया कभी नहीं भुला सकती दुनिया में इस्लाम को लाने वाले रसूल अल्लाह थे लेकिन इस्लाम को बचाने में इमाम हुसैन का बड़ा योगदान रहा है इस्लाम को बचाने के लिए हुसैन ने अपने जवान बेटे से ले कर छै महीने के बेटे को भी कुर्बान कर दिया है जवान बेटे अली अकबर को अपनी आंखों के सामने शहीद होता हुवा देखा है नन्हे से अली असगर ने अपने बाप के हाथों पर दम तोड़ दिया यजीद का अत्याचार यहीं पे समाप्त नहीं हुआ उसने इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके बीमार बेटे आबिदे बीमार के साथ औरतों को भी बंधक बना कर कूफे की गलियों में नंगे सर घुमाया और हुसैन के बीमार बेटे को जंजीरों में कैद कर रखा था यजीद की इससे बड़ी शिकस्त क्या होगी जो हुसैन के बीमार बेटे से भी खौफ खाता था तभी तो उसने एक बीमार के पैरों में बेड़ियां डाल रखी थीं यजीद के सारे अत्याचार उस पर ही भारी पड़े और उसकी ऐसी पराजय हुई की आज उसकी कब्र का निशान तक नहीं है और हुसैन के सब्र ने हुसैन को इतना बुलंद किया की आज दुनिया के हर घर में हुसैन के रौजे हैं उनकी मजलिसें हैं और लब्बैक या हुसैन का नारा है।