पिछले छह दिन से देश में गणपति जी पधारे हैं. चारों तरफ उसी की धूम है.इसी तरह के एक आयोजन में सिलवासा में भाई के घऱ में भी उपस्थिति रहा. कल शाम पांचवे दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन कर दिया गया. घऱ लौटे तो मंडप की तरफ ध्यान गया.जहाँ गणेश जी की प्रतिमा थी वहाँ की रिक्तत्ता देखकर मन में विचार आया कि इस मूर्ति का खालीपन तो मैं देख पा रहा हूँ. पूरा मंडप ही व्यर्थ लग रहा है. पर आजकल या हमेशा से ज़ब कोई इंसान अपने मंडप ( घऱ ) सें चला जाता है. हमेशा हमेशा के लिये वहाँ कोई खालीपन नही दिखता. इंसान के बदले उसके बेटी बेटे रिश्तेदार या कोई अन्य स्थान लें ही लेता है. जैसे कोई पहले सें वेटिंग या आर ए सी मौजूद रहता है. इसलिए कुछ घंटो में ही लगने लगता है. बेमतलब ही वह इतना परेशान था इन सब कों लेकर यें सब तो सभी आत्मनिर्भर थे. औऱ दूसरी तरफ इस मंडप में कोई विकल्प नहीं दिख रहा. शायद यही फ़र्क है ओरिजनल कॉपी औऱ ज़ेरोक्स में…. जय श्रीकृष्णा