DEHLI NEWS: मुख्य संवाददाता आशीष कुमार यादव इजरायल और ईरान के बीच चल रहे भीषण युद्ध ने मध्य पूर्व को युद्ध के मैदान में बदल दिया है। इस संघर्ष के केंद्र में इजरायल का विश्व प्रसिद्ध एयर डिफेंस सिस्टम ‘आयरन डोम’ है, जो ईरान की उन्नत मिसाइलों के सामने कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। 13 जून 2025 से शुरू हुए इस युद्ध के 11वें दिन, आयरन डोम की विफलता ने इजरायल की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
युद्ध मे आयरन डोम की भूमिका
इजरायल का आयरन डोम (Israel’s Iron Dome), जिसे 2011 में राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स द्वारा विकसित किया गया था, छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों और ड्रोनों को रोकने के लिए जाना जाता है। इसकी 90% से अधिक सफलता दर ने इसे दुनिया के सबसे उन्नत एयर डिफेंस सिस्टमों में शुमार किया था। हालांकि, ईरान के लगातार हमलों, खासकर हाइपरसोनिक और बैलिस्टिक मिसाइलों ने इसकी सीमाओं को उजागर कर दिया है। 13 जून को इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के तहत हमले किए, जिसके जवाब में ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’ शुरू किया। ईरान ने तेल अवीव, हाइफा, और यरूशलेम सहित इजरायल के प्रमुख शहरों पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे। इनमें फतह-1, फतह-2, और खोरमशहर-4 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलें शामिल थीं, जिन्हें आयरन डोम रोक पाने में असफल रहा।
आयरन डोम की विफलता: तथ्य और आंकड़े
14 जून की मध्यरात्रि को ईरान के हमले में तेल अवीव के रिहायशी इलाकों, रमत गान और रिशोन लेजियन में भारी तबाही मची। इजरायली सरकार के अनुसार, 30 स्थानों पर मिसाइलें गिरीं, जिसमें 24 लोगों की मौत और 592 लोग घायल हुए। दक्षिणी इजरायल के सोरोका मेडिकल सेंटर और बेर्शेबा के वोल्फसन मेडिकल सेंटर पर मिसाइल हमलों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। आयरन डोम ने 99% मिसाइलों को नष्ट करने का दावा किया, लेकिन 1% मिसाइलों का लक्ष्य तक पहुंचना भी भारी नुकसान का कारण बना। विशेषज्ञों का कहना है कि हाइपरसोनिक मिसाइलों की गति और उड़ान पथ को ट्रैक करना आयरन डोम के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। इसके अलावा, ईरान ने पहले सामान्य मिसाइलों से हमला कर आयरन डोम को व्यस्त रखा, फिर हाइपरसोनिक मिसाइलों से सटीक निशाना लगाया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में तेल अवीव का आसमान मिसाइलों से भरा दिखाई दिया, और सायरनों की आवाज के बीच लोग बंकरों में छिपते नजर आए। कई उपयोगकर्ताओं ने आयरन डोम की विफलता को इजरायल की रक्षा प्रणाली पर बड़ा झटका बताया।
विशेषज्ञों की राय
सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार, आयरन डोम छोटी दूरी के रॉकेट्स और ड्रोनों के खिलाफ प्रभावी है, लेकिन लंबी दूरी की बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों के लिए इसे डेविड्स स्लिंग और एरो-2/3 सिस्टम्स के साथ समन्वय करना पड़ता है। हालांकि, ईरान की मिसाइलों की भारी संख्या और रणनीति ने इस बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली को दबाव में ला दिया। अल जजीरा की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान के हमले आयरन डोम की क्षमता की कठिन परीक्षा बन गए हैं।पूर्व इजरायली सैन्य अधिकारी अविवी ने कहा, “आयरन डोम अभी भी विश्वसनीय है, लेकिन यह अकेले सभी खतरों का सामना नहीं कर सकता। हमें एक व्यापक रक्षा रणनीति की जरूरत है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और प्रभाव
इस युद्ध में अमेरिका ने इजरायल का खुलकर समर्थन किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज, और इस्फहान—पर हमले की पुष्टि की। इससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ गया है। रूस और ईरान ने अमेरिका के इस कदम की निंदा की, जबकि भारत ने व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत का 3.6 लाख करोड़ रुपये का व्यापार खतरे में है।
आगे की चुनौतियां
आयरन डोम की विफलता ने इजरायल के सामने दोहरी चुनौती खड़ी की है: पहला, अपनी रक्षा प्रणाली को अपग्रेड करना, और दूसरा, लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के लिए संसाधनों का प्रबंधन। ईरान ने दावा किया है कि वह छह महीने तक युद्ध के लिए तैयार है, जबकि इजरायल को इंटरसेप्टर मिसाइलों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
तेल अवीव की सड़कों पर मलबा, जली हुई कारें, और घायलों की चीखें इस युद्ध की भयावहता को दर्शाती हैं। आयरन डोम की विफलता न केवल इजरायल की सैन्य रणनीति पर सवाल उठाती है, बल्कि मध्य पूर्व में शांति की संभावनाओं को भी धूमिल करती है।