भाइयों का ऐसा प्रेम जो आज भी आदर्श है : पंडित गौरांगी गौरी जी महाराज
गया बिहार (प्रातःकाल एक्सप्रेस)। जिले के गुरारू प्रखंड स्थित गनौरी टिल्हा गांव में चल रहे श्री राम कथा के नौंवे दिन भरत मिलाप प्रसंग सुन रो पड़े श्रद्धालु। श्री राम स्तुति के बाद कथा श्री रामकथा की शुरुआत हुई। अंतराष्ट्रीय कथा वाचिका पूज्या गौरांगी गौरी जी ने भरत मिलाप का वर्णन करते हुए कहा ,
भरत के मामा घर से आने के बाद सीधे माता के कैकई और राम भैया को ढूंढते हुए उनके कक्ष में जाते हैं। उन्हें इसका आभास तक नहीं होने दिया कि उनके प्राण प्रिय भैया और भाभी 14 वर्ष के बनवास को अयोध्या से निकल गए। जानकारी होते ही वे रोते बिलखते और कैकई माता को कोसते हुए कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है मगर माता कुमाता नहीं होती। इस बात को तुमने सिद्ध किया है माता कुमाता होती है। यह कलंक यह पाप मेरे सर पर लगा। लोग क्या कहेंगे। भरत ने अपने भाई को राजगद्दी के लिए बनवास करा दिया। तभी कौशल्या और सुमित्रा दोनों भरत को समझाती है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। आओ उनका अंतिम संस्कार कर भैया को ढूंढने जाएंगे। राजा दशरथ की मृत्यु की खबर सुनकर भरत रोने लगते हैं। कर्म पूरा कर अयोध्या से अपनी तीनों मां के साथ अपने भाई को वापस लाने के लिए निकल पड़ते हैं। पीछे-पीछे प्रजा चल पड़े। निषाद राज से जानकारी लेकर भरत अपने माताओं के साथ चित्रकूट पर्वत पर जाते हैं। जहां लक्ष्मण जंगल से लकड़ियां चुन रहे थे। जैसे ही चक्रवर्ती सेना और भरत को आते देखा। आग बबूला होकर राम के पास आते हैं और कहते हैं कि भरत बड़ी सेना के साथ हमारी ओर बढ़ रहा है। तभी राम मुस्कुराते हुए कहते हैं ठहर जाओ। अनुज भरत को आने तो दो।
गौरांगी गौरी जी आगे सुनाती हैं भरत राम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगते हैं। फिर राम गले से लगाते हैं। भरत मिलाप के बाद राम तीनों माताओं का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं और माता सीता भी अपनी तीनों सास के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। उसके बाद भरत पिता के बारे में राम से कहते हैं कि अब हमारे बीच पिता श्री नहीं रहे यह शब्द सुनकर श्री राम और सीता लक्ष्मण व्याकुल हो शोकाकुल हो उठे। राम को अपने साथ ले जाने के लिए भरत मिन्नतें करते हैं। मंत्री सुमंत और प्रजा गण बार-बार उन्हें अपने साथ जाने के लिए मनाते हैं। मगर श्री राम कहते हैं कि पिता के दिए हुए वचन का मर्यादा नहीं टूटे। इसके लिए हमें यहां रहने की अनुमति दें। रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। यह कहकर लेने आए सभी लोगों को चुप करा देते हैं मगर भरत मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तब राम ने कहा प्रजा हित के लिए तुम्हें जाओ, अयोध्या के प्रजा जनों को देखना है। साथ में माताओं का भी दायित्व निर्वाह करना है। भरत ने श्री राम के चरण पादुका को अपने सर पर उठाकर आंखों में अश्रु के साथ वहां से विदा होते हैं। 14 वर्ष तक श्री राम के चरण पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर रखकर खुद जमीन पर चटाई बिछाकर सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हुए राजपाट संभालते हैं। कथा के दौरान श्री राम सीताराम का भजन कीर्तन करते हुए महा आरती के साथ प्रसंग समाप्त किया गया। कथा को लेकर आसपास में भक्तिमय माहौल बना हुआ है।
विश्वप्रसिद्ध गौरांगी जी आगे कहती हैं राम के जीवन और आदर्शों को आत्मसात करते हुए कथा को महज सुने नही बल्कि आत्मसात करें। यह हमें परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने का महत्व सिखाता है। श्रद्धालुओं के जय श्री राम – जय श्री राम के नारे से पंडाल गूंज उठे पंडाल में कथा खत्म होते ही श्रद्धालुओं की भीड़ कथावाचक पूज्या गौरांगी जी के तरफ आशीर्वाद लेने हेतु चल पड़ी। मौजूद तमाम लोग गौरी जी के साथ एक सेल्फी लेने के लिए आतुर दिखें। कार्यक्रम का आयोजन विगत 21 मई से आगामी 31 मई तक किया जाएगा। कार्यक्रम का आयोजन राजमंगल सिंह व रंजीत सिंह के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। उक्त कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक पूज्या पंडित गौरांगी गौरी जी द्वारा श्री राम कथा को सुनने हेतु हज़ारो लोग रोज शिविर में आ रहे हैं।