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सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र पर पशु विज्ञान के अंतर्गत कुक्कुट पालन( मुर्गी पालन) विषय पर पांच दिवसीय रोजगारपरक प्रशिक्षण का समापन किया गया

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कोक्सीडियोसिस, एंटायरिटीज, एस्परगिलोसिस, कृमि संक्रमण जैसी समस्याएँ मुख्यतः कूड़े से उत्पन्न होती हैं। मक्खियों और मच्छरों से बचाव के लिए विर्कॉन और मेलाथियोन जैसी दवाओं का उपयोग करने की सलाह दी गई।
कुल मिलाकर, यह प्रशिक्षण युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने में मददगार साबित हुआ, जिसमें उन्होंने कुक्कुट पालन की बारीकियों को सीखा और इसके विभिन्न व्यावसायिक पहलुओं को समझा। प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान से युवा अपने व्यवसाय को अधिक कुशलता और लाभकारी तरीके से संचालित कर सकते हैं।

सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र पर ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के लिए मुर्गी पालन का प्रशिक्षण वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया जिसका समापन किया गया यह प्रशिक्षण युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना और कुक्कुट पालन की विभिन्न पद्धतियों की जानकारी देना था। प्रशिक्षण का संचालन केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह द्वारा किया गया, जिन्होंने कुक्कुट पालन के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
डॉ. सिंह ने कुक्कुट पालन को एक प्राचीन व्यवसाय बताया, जो सदियों से खेती के साथ-साथ किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि कुक्कुट पालन के अंतर्गत मुर्गी, बत्तख, बटेर, तीतर आदि पक्षियों का पालन आता है। यह व्यवसाय विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ही लाभकारी है, क्योंकि इसमें कम लागत में अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए बताया कि कुक्कुट पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जो स्वरोजगार के रूप में अपनाया जा सकता है और इससे नियमित आय प्राप्त की जा सकती है। मुर्गी पालन के कई फायदे हैं। यह मांस और अंडों के उत्पादन के लिए किया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान मुर्गी पालन में प्रयुक्त उपकरणों, विभिन्न प्रजातियों, आहार और प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया गया। मुर्गी पालन के लिए उपयोग होने वाली प्रजातियों में असील, कड़कनाथ, चित्तागोंग, कैरी श्याम, कैरी निर्भीक, हितकारी, उपकारी, कैरी प्रिया, शायरी, सोनाली और ब्रो धनराज शामिल हैं। इन प्रजातियों के पालन से अंडा और मांस का अच्छा उत्पादन होता है।
डॉ. सिंह ने मुर्गियों के लिए उपयोग किए जाने वाले आहार के बारे में भी विस्तार से बताया। आहार में पीली मक्का, राइस पॉलिश, गेहूं का चोकर, सोयाबीन मील, चूना पत्थर, डी-कैल्शियम फॉस्फेट, नमक और विटामिन खनिजों का उपयोग होता है। उन्होंने बताया कि मुर्गियों के लिए तैयार आहार में 66-68 प्रतिशत ऊर्जा स्रोत जैसे पीली मक्का और राइस पॉलिश, 30 प्रतिशत प्रोटीन स्रोत जैसे सोयाबीन मील, 2 प्रतिशत लाइमस्टोन और डी-कैल्शियम फॉस्फेट, 0.25 प्रतिशत नमक और विटामिन्स मिलाए जा सकते हैं। फिनिशर आहार में 74 प्रतिशत ऊर्जा और 23 प्रतिशत प्रोटीन स्रोतों के साथ अन्य खनिज और विटामिन मिलाकर आहार तैयार किया जा सकता है।
प्रशिक्षण में बीमारियों की पहचान और रोकथाम पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। बीमार पक्षियों के सामान्य लक्षणों में सुस्ती, उदासी, खाने-पीने में अनिच्छा, एक जगह इकट्ठा होना, पंखों का उखड़ना, नाक से स्राव, साइनस और आंखों में सूजन, मल का परिवर्तन, तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, कंगन और वेटल्स का रंग बदलना, उत्पादन में कमी, कमजोरी और लंगड़ापन शामिल हैं।
जीवाणुजनित बीमारियों में ओम्फालाइटिस, पुलोरम, फाउल टाइफाइड, फाउल हैजा और क्रोनिक श्वसन रोग शामिल हैं। इन बीमारियों के लिए व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स जैसे पेल्विन, एनरोफ्लोक्सासिन, नियोमाइसिन, टेरामाइसिन, जेंटामाइसिन, माइकोसल, लिनकोस्पेक्टिन और एरिथ्रोमाइसिन का उपयोग सल्फा दवाओं के साथ करने की सिफारिश की गई। विषाणुजनित रोगों में रानीखेत, मेरैक, गुम्बोरो, लीची रोग, फाउल पॉक्स और ई डी एस-76 शामिल हैं। इन बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है। द्वितीयक संक्रमण की संभावना को कम करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की निवारक खुराक देने की सलाह दी गई। साथ ही, तेजी से ठीक होने के लिए मल्टीविटामिन, लिवर टॉनिक और अन्य पूरक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
प्रशिक्षण के दौरान बरसात के मौसम में पोल्ट्री पक्षियों का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण विषय रहा। बरसात में मुर्गियों की सुरक्षा के लिए पोल्ट्री शेड के आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। पानी की निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि शेड में नमी न रहे। शेड के फर्श की मरम्मत और उसे सूखा रखने पर जोर दिया गया। पुराने और नम कूड़े को तुरंत हटाकर नया कूड़ा डालने की सलाह दी गई। कूड़े को सूखा रखने के लिए चूना और अमोनियम सल्फेट का उपयोग किया जा सकता है।
कोक्सीडियोसिस, एंटायरिटीज, एस्परगिलोसिस, कृमि संक्रमण जैसी समस्याएँ मुख्यतः कूड़े से उत्पन्न होती हैं। मक्खियों और मच्छरों से बचाव के लिए विर्कॉन और मेलाथियोन जैसी दवाओं का उपयोग करने की सलाह दी गई।
कुल मिलाकर, यह प्रशिक्षण युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने में मददगार साबित हुआ, जिसमें उन्होंने कुक्कुट पालन की बारीकियों को सीखा और इसके विभिन्न व्यावसायिक पहलुओं को समझा। प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान से युवा अपने व्यवसाय को अधिक कुशलता और लाभकारी तरीके से संचालित कर सकते हैं।
प्रशिक्षण के पांचवें दिवस में केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर आई के कुशवाहा ने युवाओं से कहा की प्रशिक्षण प्राप्त रोजगार प्रारंभ करें ,कृषि विज्ञान केंद्र हमेशा तकनीकी सहयोग प्रदान करेगा प्रशिक्षण में केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर रविंद्र तोमर ,डॉक्टर शालिनी सिंह ,डॉ वीरेंद्र कुमार, डॉ सुखदेव सिंह ,तथा युवा कृषक रजत कुमार ,संदीप कुमार राजेश, अमित कुमार ,अर्जुन अश्रुत शारदा दीपक ,सैफुद्दीन ,शूजाउद्दीन ,योगेश अवतार सिंह, ज्योति ,शालू आदि युवाओं ने उत्साह पूर्वक भाग लिए तथा प्रशिक्षणर्थियों को प्रमाण पत्र देकर कार्यक्रम का समापन किया गया