अब्दुल बारी ‘निशान-ए-उर्दू अदब’ से सम्मानित
ETAWA: बज़्म-ए-अरबाब-ए-अदब इटवा ने हाल ही में अपना 100वाँ मासिक सत्र सफलतापूर्वक आयोजित कर साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। जमाल कुद्दूसी के संरक्षण, इसरार अहमद फ़ारूक़ी की अध्यक्षता और डॉ. अयाज़ आज़मी के निर्देशन में संपन्न हुए इस परिचर्चा सत्र का मुख्य आकर्षण अब्दुल बारी साहब को प्रतिष्ठित ‘निशान-ए-उर्दू अदब’ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना रहा। सत्र की शुरुआत सैयद अज़ीज़-उर-रहमान द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद सगीर रहमानी साहब ने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की शान में नात-ए-पाक पढ़ी। इस अवसर पर कई जाने-माने और उभरते हुए शायरों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर महफ़िल में चार चाँद लगा दिए। शायरों द्वारा प्रस्तुत की गईं कविताओं में गहन सामाजिक और मानवीय संदेश निहित थे। इनमें जमाल कुद्दूसी की ‘सुभान का साया नहीं मिलता, जो इतनी नफरतें नहीं पनपतीं, डॉ. अयाज आजमी की ‘एक मजदूर की लाश कह रही थी, मौत सस्ती है, जिंदगी सस्ती नहीं’ और अरशद इकबाल की ‘जहाँ भी देखो धुआँ ही धुआँ है, कहाँ नहीं जलती इस दिल की बस्ती’ जैसी रचनाएँ विशेष रूप से सराही गईं। इसके अतिरिक्त, हिदायतुल्लाह शम्सी, जाहिर रहमानी, सगीर रहमानी, ब्रह्म देव शास्त्री पंकज, अबराक साजिदी, सैयद अजीज-उल-रहमान अजीज, शमशीरभाई, अल-ताजहुसैन नूर सिद्दीकी, मुहम्मद जमाल अजमल, अब्दुल रब असद बस्तवी, मसूदुल हक रहमानी, जुनैद फरहा, अब्दुल रब जौहर, ज़मीर अहमद ज़मीर कासिमी, अब्दुल मुबीन मुबीन, शफीक शाहपर, डॉ. जावेद कमाल सिद्दीकी, सलमान हनीफ, अब्दुल माजिद माजिद और डॉ. क़मर इक़बाल जैसे शायरों ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओं का दिल जीता। इस साहित्यिक आयोजन में डॉ. रिज़वान-उल-रिदा, नईम अरशद अल-कासिमी, अनवर परसा बस्तवी, शमशाद हशमत नेपाली, बलराम त्रिपाठी, राकेश त्रिपाठी, अमीर हमजा सहित डॉ. नादिर सलाम, डॉ. मुजम्मिल हुसैन, मास्टर करम मुहम्मद, मौलाना इकबाल, मौलाना शाहिद जुनैद मदनी, डॉ. अब्दुल कुद्दूस, मुहम्मद शाबान, सलमान कबीरनगरी आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। बज़्म-ए-अरबाब-ए-अदब इटवा का यह 100वाँ सत्र उर्दू अदब के प्रचार-प्रसार और साहित्यकारों को एक साझा मंच प्रदान करने की दिशा में संस्था की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो भविष्य में भी ऐसी साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करेगा।