टीवी पर लाहौर जीत लिया, ज़मीन पर आँसू बहा दिए
— जब राष्ट्रवाद स्क्रीन पर चमकता है और असली ज़िंदगी में धुंधला पड़ जाता है।
न्यूज़ चैनल राष्ट्रवाद को एक स्क्रिप्टेड तमाशे की तरह पेश करते हैं। रात में टीवी पर ऐसा माहौल बनाया जाता है मानो भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर दिया हो, लेकिन असलियत में कुछ नहीं होता। मीडिया, फिल्मों और चुनावी भाषणों में सर्जिकल स्ट्राइक जैसी सैन्य कार्रवाईयों का खूब प्रचार होता है, जबकि असली शहीदों और उनके परिवारों की पीड़ा को भुला दिया जाता है। सोशल मीडिया पर जब लोग सवाल पूछते हैं, तो उन्हें देशद्रोही कहकर चुप करा दिया जाता है। चुनावों के समय राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर असली समस्याओं जैसे बेरोजगारी और शिक्षा से ध्यान भटका दिया जाता है। यह लेख पाठकों से पूछता है — क्या वे सिर्फ इस दिखावे का हिस्सा बनकर ताली बजाते रहेंगे या असली देशभक्ति दिखाते हुए सच्चाई और पीड़ा के साथ खड़े होंगे? असली देशभक्ति शोर में नहीं, संवेदना, सच्चाई और सवाल पूछने की हिम्मत में होती है।
– प्रियंका सौरभ
रात का वक्त है। घरों में लोग टीवी ऑन करते हैं, न्यूज़ चैनल्स लगाते हैं, और अगली ही पल स्क्रीन पर धमाके शुरू हो जाते हैं — “भारत ने लाहौर में घुसकर की बड़ी कार्रवाई!”, “पाक के होश उड़े!”, “घुटनों पर पाकिस्तान!” जैसे शीर्षक चलते हैं और एंकर ऐसे चीखते हैं जैसे वो रणभूमि से लाइव रिपोर्टिंग कर रहे हों। लेकिन जब सुबह आँख खुलती है, तो सब वैसा ही होता है जैसा था। कहीं कोई युद्ध नहीं, कोई हमला नहीं, बस टीआरपी का तिलिस्मी खेल था। यह युद्ध नहीं, एक स्क्रिप्टेड शो है — राष्ट्रवाद का एक सजीव तमाशा, जो टीआरपी के नाम पर परोसा जा रहा है। असली सवाल यह है कि क्या देश की सुरक्षा, शहीदों की शहादत और जनता की भावनाएं भी अब मीडिया मार्केटिंग का हिस्सा बन चुकी हैं?