Home उत्तर प्रदेश झांसी के रहने वाले गौरव जेई के टेक्नोलॉजी की बुंदेलखंड में चर्चा

झांसी के रहने वाले गौरव जेई के टेक्नोलॉजी की बुंदेलखंड में चर्चा

विद्युत विभाग में पदस्थ जेई की  टेक्नोलॉजी ने झांसी सहित जालौन का किया नाम रोशन

JHANSI NEWS: महानगर के खोडन क्षेत्र लहर गिर्द के पास के रहने वाले उरई में विद्युत विभाग में पदस्थ जेई गौरव कुमार की टेक्नोलॉजी कार्य ने झांसी सहित जालौन का किया नाम रोशन कर दिया। वहीं गौरव जेई की टेक्नोलॉजी की चर्चाएं पूरे बुंदेलखंड में आग की तरह फैल रही है।जहां देखो वहां जेई के इस कार्य की जमकर सराहना की जा रही है। गौरव जेई की चर्चाओं का विषय यह है कि बुधवार की रात शहर उरई रेलवे स्टेशन पर अपनों से बिछड़ कर भटक रहे एक मासूम को टेक्नोलॉजी ने मासूम को अपने परिजनों से मिलवा दिया। जिसका माध्यम उरई शहर के विद्युत विभाग में पदस्थ गौरव जेई थे।जिनकी नजर मासूम पर पड़ी तो उन्होंने चाइल्ड हेल्पलाइन समेत आरपीएफ थाने को सूचना दी।लेकिन परिजनों का कोई सुराग नहीं लगा।फिर जेई ने गूगल मैप के जरिए मासूम का गांव खोज कर उसे परिवार जनों से मिलने में मदद की। इस कार्य की स्थानीय लोग जमकर सराहना कर रहे हैं विवरण में बताते चले कि बुधवार की रात उरई रेलवे स्टेशन की भीलवाड़ा और शोरगुल के बीच एक मासूम की खोई हुई आंखों में डरा सहमा घूम रहा था जिस पर विद्युत विभाग में तैनात जूनियर इंजीनियर गौरव कुमार की नजर पड़ गई।जिन्होंने बच्चे को देखा और उससे बात की बच्चों ने अपना नाम रोहित कुमार उम्र करीब 11 वर्ष बताया।वह अपनों से बिछड़  गया था। जेई ने तत्काल इसकी सूचना आरपीएफ और चाइल्ड हेल्पलाइन को दी। चाइल्ड हेल्पलाइन को बच्चा सौंपने के बाद भी जेई ने राहत की सांस नहीं ली।उनके लिए यह एक बच्चा नहीं बल्कि किसी मां का लाल था जो गुम हो गया था और शायद एक पिता का सपना जो किसी स्टेशन के कोने में कांप पर रहा था जब तकनीक बनी इंसानियत की साथी बच्चे ने गांव का नाम बताया “कोरा”। बस यही से गौरव कुमार की खोज शुरू हो गई और उन्होंने गूगल मैप पर “कोरा” सर्च किया और वहां दिखाई दी “महावीर स्वीट्स” नाम की एक दुकान।जिस पर फोन नंबर भी था जैसे ही उन्होंने फोन मिलाया दूसरी तरफ से एक उम्मीद की किरण जा गई।संतोष त्रिपाठी नामक शख्त ने बात की और ग्राम प्रधान से संपर्क का रास्ता खोल दिया आधार और फोटो से हुई पहचान।ग्राम प्रधान की मदद से गौरव कुमार ने बच्चे की फोटो गांव में भेजी। थोड़ी ही देर बाद आधार कार्ड और पारिवारिक तस्वीरें भेजी गई। मिलान होते ही सब स्पष्ट हो गया कि बच्चा सच में “कोरा” गांव का ही रहने वाला है जिसका नाम रोहित कुमार निषाद है। गुरुवार को सुबह पहुंचा उसका भाई मिली फिर से खोई हुई मुस्कान। अगले दिन सुबह रोहित का बड़ा भाई नितिन निषाद उरई पहुंचा कागजी औपचारिकताओं के बाद बच्चे को परिजनों को सौंप दिया गया। बच्चा अब सुरक्षित था क्योंकि किसी ने अपनी ड्यूटी से आगे जाकर केवल इंसान बनकर काम किया।मिठास सिर्फ मिठाई की नहीं थी बल्कि उस जज्बे की थी जो गौरव कुमार के दिल में थी। यह घटना एक संदेश है संवेदनशीलता तकनीक और थोड़ी सी कोशिश अगर साथ हो तो कोई भी राह नामुमकिन नहीं होती। ऐसे अफसरों की वजह से व्यवस्था में इंसानियत की रोशनी आती है।