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जानिए पूरी कहानी : त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम् इसका शाब्दिक अर्थ है ? कौन है रानी पिंगला

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एक बहुत अधिक प्रसिद्ध श्लोक है जिसे आप सबने अवश्य सुना होगा । यदि नहीं सुना है तो उसे मैं बता देता हूं । वह श्लोक इस तरह है

त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम् ।

देवो न जानाति , कुतो मनुष्य : ।।

इसका शाब्दिक अर्थ है कि स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य को देवता भी नहीं जानते हैं तो फिर इन्हें जानना मनुष्य के बस में कहां है ?

शायद आप में से बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि इस श्लोक की रचना उज्जैन के प्रख्यात राजा भर्तृहरि ने की है । राजा भर्तृहरि न केवल जन कल्याण करने वाले राजा थे बल्कि वे उच्च कोटि के विद्वान भी थे । वे कवि , साहित्यकार और दार्शनिक थे । उन्होंने इस श्लोक में स्त्री के चरित्र को बहुत “जटिल” बताया गया है । वस्तुत: इसमें उनका कोई दोष भी नहीं है । प्यार में धोखा खाने वाला हर व्यक्ति ऐसा ही सोचेगा जैसा उन्होंने लिखा है । तो आइए आज इस श्लोक के बनने की कहानी सुनाते हैं ।

आज से लगभग 1500-2000 वर्ष पहले उज्जैन नगरी के राजा थे भर्तृहरि महाराज । बहुत प्रतापी , विद्वान, कला के पारखी और साहित्यकार । पूरे राज्य में सुख समृद्धि अमन चैन था । धन धान्य सब कुछ था । प्रजा खुश थी ।

उनकी एक पत्नी थी जिसका नाम था रानी पिंगला । रानी पिंगला अभूतपूर्व रूपवती , लावण्य की प्रतिमूर्ति और कामदेव की पत्नी रति को भी लजाने वाली अनिंद्य सुन्दरी थीं । यद्यपि राजा भर्तृहरि बहुत विद्वान थे, शास्त्रों के ज्ञाता और दार्शनिक व्यक्ति थे। वे शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता को जानते थे । लेकिन उनकी एक कमजोरी थी कि वे अपनी पत्नी रानी पिंगला पर जान छिड़कते थे । खुद से ज्यादा रानी पिंगला से प्यार करते थे वे । सौन्दर्य है ही ऐसी चीज जिसकी ओर ऋषि , मुनि, साधु, संत , देव, यक्ष , गंधर्व सब आकर्षित होते हैं तो फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है ? संसार और शरीर की नश्वरता जानने के पश्चात भी किसी शरीर के प्रति ऐसी दीवानगी आश्चर्य जनक है ।

उन दिनों “नाथ संप्रदाय” के प्रणेता गुरु गोरखनाथ ने बहुत कठिन तपस्या की । उस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक चमत्कारिक फल दिया और कहा कि इस फल को जो व्यक्ति खायेगा वह अमर हो जाएगा । इस फल को देने के पश्चात ब्रह्मा जी अन्तर्धान हो गये ।

“अमर फल” पाकर गुरु गोरखनाथ ने सोचा कि इस फल को यदि वह खा लेगा तो इससे वे अमर हो जायेंगे लेकिन आम जनता को इससे क्या फायदा होगा ? यदि इस फल को कोई ऐसा व्यक्ति खाये जिससे जनता को फायदा हो तब तो इस फल की उपयोगिता है अन्यथा यह फल बेकार है । इस बारे में वे सोच विचार करते रहे । अचानक उन्हें ध्यान आया कि उज्जैन के राजा राजा भर्तृहरि एक जन हितैषी, लोक कल्याणकारी और लोकप्रिय राजा हैं । यदि वे इस फल को खायेंगे तो वे अमर हो जाऐंगे । यदि राजा भर्तहरि अमर हो जायेंगे तो इस राज्य का बेड़ा पार हो जाएगा और जनता सदा सदा के लिए सुखी हो जाएगी ।

ऐसा सोचकर गुरु गोरखनाथ राजा भर्तृहरि के दरबार में पधारे । राजा ने उनका यथोचित आदर सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा । गुरु गोरखनाथ ने वह अमर फल राजा भर्तृहरि को दे दिया और उसकी महिमा का सारा वृत्तांत कह सुनाया । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह फल उन्हें (राजा भर्तृहरि) ही खाना है , इसे किसी और को नहीं देना है ।

राजा भर्तृहरि ने वह अमर फल ले लिया और गुरु गोरखनाथ को विदा किया । उन्होंने मन ही मन सोचा कि वे इस फल को खाकर क्या करेंगे ? उनके अमर होने से क्या लाभ होगा ? रानी पिंगला से कितना प्यार करते हैं वे । रानी पिंगला कितनी सुन्दर हैं ? यदि उनका रूप लावण्य इस नश्वर संसार में अमर हो जाए तो उनका प्यार भी अमर हो जाएगा । यदि यह फल रानी पिंगला खायें तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ? प्रेमी हमेशा प्रेमिका के भले के लिए ही सोचता है । इसलिए उन्होंने वह अमर फल रानी पिंगला को दे दिया ।

रानी पिंगला को अपने राज्य के बलिष्ठ सेनापति से प्रेम था । उसने सोचा कि यदि वह अमर फल सेनापति खा लेगा तो वह अमर हो जाएगा और वह सेनापति उसकी कामेच्छाओं की पूर्ति भी करता रहेगा । इसलिए उसने वह अमर फल सेनापति को दे दिया ।

सेनापति उस राज्य की सर्वश्रेष्ठ वेश्या से सच्चा प्यार करता था । उसने भी अपना प्रेमी धर्म निभाते हुए वह अमर फल उस वेश्या को दे दिया ।

वेश्या उस अमर फल को पाकर सोचने लगी कि वह अमर होकर क्या करेगी ? यही गंदा काम ? यदि यही गंदा काम करना है तो फिर अमर होना तो उसके लिए एक अभिशाप होगा । फिर अमर फल क्यों खाना ? इससे अच्छा है कि यह अमर फल वह व्यक्ति खाये जिसकी इस देश और समाज को बहुत आवश्यकता हो । और इसके लिए राजा भर्तृहरि से अच्छा और कौन व्यक्ति हो सकता है भला ?

घूम फिर कर वह अमर फल राजा भर्तृहरि के पास आ गया । राजा भर्तृहरि उस अमर फल को देखकर चौंके । उसने वेश्या से पूछा कि वह अमर फल उसके पास कहां से आया ? वेश्या ने सेनापति का नाम बता दिया । राजा ने सेनापति को बुलवाया और अमर फल दिखाकर कहा कि तुमने इसे इस वेश्या को दिया ? सेनापति ने हां भरी । तब राजा भर्तृहरि ने सेनापति से पूछा कि यह फल उसे कहां से मिला तो सेनापति ने रानी पिंगला का नाम ले दिया ।

रानी पिंगला का नाम सुनकर

राजा भर्तृहरि का दिल टूट गया । जिसे वह अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था वह किसी और को प्यार करती है ? यह सोचकर वह पागल होने लगा । लेकिन राजा बुद्धिमान , धैर्यवान और नीति कुशल था । वह पागलपन में कोई गलत काम नहीं करना चाहता था । इसलिए वह सीधा अपने रनिवास में गया और उसने रानी पिंगला से पूछा कि उसने वह अमर फल खा लिया था या नहीं ?
तब रानी पिंगला ने कहा “खा लिया” ।

फिर राजा भर्तृहरि ने अपने पास से वह अमर फल निकाला और उसे रानी पिंगला को दिखाया । रानी पिंगला उस अमर फल को देखकर सब माजरा समझ गई और चोरी खुलने के डर से राजा भर्तृहरि के चरणों में गिर पड़ी ।

राजा को इस घटना के कारण इस संसार , नाते रिश्ते , प्यार वगैरह सबसे वैराग्य हो गया । वह अपने छोटे भाई विक्रमादित्य जो कि इतिहास प्रसिद्ध है , जिसकी विक्रम बेताल की कहानियां प्रसिद्ध हैं, को राज सौंपकर वैराग्य हेतु गुरू गोरखनाथ की शरण में चला गया ।

गुरु ने कहा “वैराग्य धारण करना आसान काम नहीं है । जो वैराग्य लेता है उसकी किसी भी वस्तु , प्राणी , पेड़ पौधे में आसक्ति नहीं होनी चाहिए । तभी वैराग्य हो सकता है । तुम अपनी सबसे प्रिय रानी पिंगला से माता कहकर भिक्षा लेकर आओगे तब मैं तुम्हें वैराग्य में दीक्षा दूंगा” ।

राजा भर्तृहरि साधु के वेश में रानी पिंगला के समक्ष उपस्थित हुए और उनसे माता कहकर भिक्षा मांगी । रानी पिंगला अपने अपराध पर बहुत लज्जित हुई लेकिन राजा भर्तृहरि टस से मस नहीं हुए और भिक्षा लेकर ही लौटे ।

सच्चा साधु वही है जो नारी के छोटे से लेकर बड़े रूप में माता की तरह देखे , किसी के प्रति घृणा , द्वेष , ईर्ष्या नहीं रखे । ना मान ना अपमान की चिंता हो । इन पैमानों पर खरा उतरने वाला व्यक्ति ही सच्चा साधु होता है अन्यथा वह लम्पट ही होता है ।

इसके पश्चात

राजा भर्तृहरि ने घोर तपस्या की और उज्जैन के पास में कंदराओं में रहने लगे । वे कंदराएं आज भी उज्जैन में स्थित हैं । मैं वहां जाकर आया हूं ।

वैराग्य काल में उन्होंने तीन महान ग्रंथों की रचना की

1.नीति शतक, 2-श्रंगार शतक, 3-वैराग्य शतक

शतक मतलब सौ । प्रत्येक ग्रंथ में सौ श्लोक हैं जो उस विषय से संबंधित हैं । अगर पढ़ने को मिलें तो अवश्य पढ़िएगा ।

रानी पिंगला से मिले विश्वासघात के कारण उन्होंने इस श्लोक की रचना की थी ।
श्री हरि