PRATAPGARH: जिला कृषि अधिकारी अशोक कुमार ने जनपद के समस्त कृषक भाइयों को सूचित किया है कि वर्तमान खरीफ मौसम में उर्द (काली दाल) एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो कम समय में तैयार होती है और भूमि की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाती है। जिले में उर्द की फसल के उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सुझाव एवं दिशा-निर्देश को अपनायें। बीज चयन एवं बुआई समय के सम्बन्ध में बताया गया है कि उर्द की बुआई के लिए पंत उर्द 10, आई.पी.यू.-13-1, आई.पी.यू.-11-02 जैसी उन्नत किस्में उपयुक्त हैं। बुआई के लिए 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज़ दर से जुलाई के अन्तिम सप्ताह से अगस्त के द्वितीय सप्ताह में करे। बुआई से पूर्व बीजों को राइजोबियम कल्चर तथा ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना आवश्यक है जिससे फसल की वृद्धि एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। खाद एवं उर्वरक प्रबंधन के लिये प्रति हेक्टेयर 10-15 किग्रा. नाइट्रोजन, 40 किग्रा. किलो फॉस्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर, 200 किग्रा. जिप्सम का प्रयोग करे। जैविक खाद का प्रयोग भी लाभकारी रहता है। उर्द की फसल में पीला मोज़ेक वायरस, पत्तों पर झुलसा रोग एवं माहू आदि कीटों का प्रकोप देखा जाता है। आवश्यकतानुसार रोग एवं कीट नियंत्रण हेतु अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करें। जैसेः मोज़ेक रोग से प्रभावित पौधों को निकाल कर नष्ट करें। माहू नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। उर्द (मूंग) की फसल में खरपतवार नियंत्रण और जल निकासी दोनों ही पैदावार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ इनके लिए विशेष प्रावधान और प्रबंधन तकनीकें दी गई हैं। खरपतवार नियंत्रण के सम्बन्ध में बताया है कि उर्द की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार तीव्रता से बढ़ते हैं, जिससे पैदावार 30-50 प्रतिशत तक कम हो सकती है। नियंत्रण के प्रमुख तरीकेः निराई-गुड़ाईः बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई और 40-45 दिन बाद दूसरी निराई करें। हर्बिसाइड्स का सावधानी से प्रयोग- रसायनों का छिड़काव हवा रहित दिन और फसल की उचित अवस्था में करें। बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत को खरपतवार-मुक्त रखें। जल निकासी के सम्बन्ध में बताया है कि उर्द जलभराव को सहन नहीं कर सकती। अधिक नमी से पीला पड़ना, जड़ सड़न और फफूंदी रोग होते हैं। खेत की तैयारी- उठी हुई क्यारियाँ बनाएँ, 3-4 फुट चौड़ी क्यारियों में बुवाई करें ताकि पानी नालियों से बह जाए। खेत को समतल करें ताकि पानी एक जगह इकट्ठा न हो। 25-30 सेमी ऊँची मेड़ बनाएँ ताकि बाहर का पानी अंदर न आए। हल्की सिंचाई- फूल आने और फलियाँ बनने के दौरान केवल आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। मानसून में सावधानीः लगातार बारिश के दौरान खेत से पानी निकालने का प्रबंध रखें। उन्होने बताया है कि उर्द की अच्छी पैदावार के लिए पहले 50 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण और जलभराव से बचाव आवश्यक है। यांत्रिक, रासायनिक और जल प्रबंधन तकनीकों के समन्वित उपयोग से 20-30 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।