प्रयागराज। देश में आपातकाल के दौरान भी भारत की न्यायपालिका न सिर्फ अडिग खड़ी रही बल्कि उसने संविधान के मौलिक स्वरूप को बचाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। इसके फलस्वरूप ही आज हम अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग कर पा रहे हैं। यह विचार उत्तर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में आयोजित एक परिचर्चा में व्यक्त किए। आपातकाल में न्यायपालिका की भूमिका विषय पर परिचर्चा का आयोजन भारतीय भाषा अभियान काशी प्रांत द्वारा किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता ने कहा कि आपातकाल के दौरान 39 वा
संविधान संशोधन लाया गया। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति को सीमित कर दिया गया। इस संशोधन की वैधानिकता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति को कम करना संविधान के मौलिक ढांचे में परिवर्तन करना है इसलिए इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता ने कहा आपातकाल भारत के लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय है। इस दौरान मीसा जैसे कानून में हजारों भारतीयों को नजरबंद किया गया और न्यायपालिका से ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार छीन लिया गया लेकिन देश के दस उच्च न्यायालयों ने इसके बावजूद जमानतें मंजूर की। मीसा बंदियों की कुछ याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट पहुंची जिस पर पांच जजों की पीठ ने बहुमत से फैसला दिया कि मीसा बंदियों की याचिकाएं स्वीकार नहीं हो सकती। लेकिन जस्टिस एच आर खन्ना ने इसके विपरीत निर्णय दिया। उन्होंने कहा कि संविधान हो या न हो नैसर्गिक अधिकार फिर भी रहेंगे क्योंकि यह सनातन है। परिचर्चा का संचालन भारतीय भाषा अभियान के काशी प्रांत संयोजक अजय कुमार मिश्रा ने किया। इसमें हाइकोर्ट इकाई के संयोजक पवन कुमार राव सह संयोजक अनूप कुमार मिश्र ए पी मिश्रा नरसिंह दीक्षित सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी अभिषेक अमन अनीता परिहार सीमा वर्मा लब्ध प्रतिष्ठ मिश्र शिव पूजन राय दिनेश सिंह संजय राय अरविन्द सिंह सलीम खान भूपेंद्र अंकित गौर धर्मेंद्र सिंह स्मृति शुक्ला अनुज त्रिपाठी आदि शामिल रहे।