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अभी तो मेंहदी सूखी भी न थी

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“अभी तो मेंहदी सूखी भी न थी”
— पहलगाँव हमले पर एक कविता
अभी तो हाथों से उसका मेंहदी का रंग भी नहीं छूटा था,
कलाईयों में छनकती चूड़ियाँ नई थीं,
सपनों की गठरी बाँध वो चल पड़ा था वादियों में,
सोचा था — एक सफर होगा, यादों में बस जाने वाला।
पर तुम आए —
नाम पूछा, धर्म देखा, गोली चलाई!
सर में…
जहाँ शायद अभी भी हँसी के कुछ अंश बचे होंगे।
रे कायरों!
तुम क्या जानो मोहब्बत की बोली?
तुम्हें दो गज ज़मीन भी न मिले,
जो ज़िन्दगी के गीत को मातम में बदल दो।
वो राजस्थान से आया था,
हिन्दू था, इंसान भी था —
पर तुम्हारी सोच इतनी छोटी थी,
कि नाम ही उसकी सज़ा बन गया।
वो तस्वीर…
जहाँ पत्नी पति के शव को निहार रही है —
न आँसू बहे, न चीख निकली,
सिर्फ एक मौन जिसने पूरी मानवता को जगा दिया।
क्या कोई कभी सोच सकता है —
कि हनीमून ट्रिप की तस्वीरें,
कफन के साथ आएंगी?
पहलगाँव की हवाएँ अब सर्द नहीं,
बल्कि सुबकती हैं…
हर बर्फ की चादर में एक सवाल लिपटा है —
“आख़िर क्यों?”
— प्रियंका सौरभ
-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045
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-ਪ੍ਰਿਅੰਕਾ ਸੌਰਭ
 
ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਖੋਜ ਵਿਦਵਾਨ,
ਕਵਿਤਰੀ, ਸੁਤੰਤਰ ਪੱਤਰਕਾਰ ਅਤੇ ਕਾਲਮਨਵੀਸ,
ਉਬਾ ਭਵਨ, ਆਰੀਆਨਗਰ, ਹਿਸਾਰ (ਹਰਿਆਣਾ)-127045
 
(ਮੋ.) 7015375570 (ਟਾਕ+ਵਟਸ ਐਪ)
Priyanka Saurabh
Research Scholar in Political Science
Poetess, Independent journalist and columnist,
AryaNagar, Hisar (Haryana)-125003
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