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ढेबरुआ थाने के बगल में बनी 90 साल पुरानी मस्जिद और मदरसे को प्रशासन ने कराया ध्वस्त

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प्रशासन ने बताया अवैध कब्जा, तहसीलदार कोर्ट के आदेश पर हुई कार्रवाई; ग्रामीण बोले- ‘सरकार नफरत फैलाकर बांटना चाहती है, हम बंटेंगे नहीं’

SIDHARTHNAGAR: जनपद के शोहरतगढ़ तहसील क्षेत्र अंतर्गत विकास खण्ड बढ़नी के ढेबरुआ थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत सिसवा उर्फ शिवभारी में थाने की बाउंड्री से सटी बंजर भूमि गाटा संख्या 337 और 338 पर दशकों से स्थित एक मस्जिद और मदरसे को बुधवार को प्रशासन ने भारी सुरक्षा बल की मौजूदगी में ढहा दिया। इस कार्रवाई से स्थानीय मुस्लिम समुदाय में गहरा दुःख और आक्रोश व्याप्त है, जो इसे अल्पसंख्यक समाज के धार्मिक और शैक्षणिक स्थलों को निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं।
प्रशासन का पक्ष: अवैध अतिक्रमण पर विधिक कार्रवाई
एसडीएम शोहरतगढ़ राहुल सिंह ने बताया कि ध्वस्तीकरण की यह कार्रवाई सरकारी बंजर भूमि पर किए गए अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए की गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मस्जिद और मदरसा अनाधिकृत रूप से निर्मित थे। प्रशासन ने कई बार नोटिस जारी किए और संबंधित लोगों से स्वयं अतिक्रमण हटाने का अनुरोध किया था, साथ ही चेतावनी भी दी थी कि ऐसा न करने पर ध्वस्तीकरण शुल्क (डिमोलिशन चार्ज) वसूला जाएगा।
अधिकारियों के अनुसार, यह कार्रवाई तहसीलदार शोहरतगढ़ के एक अंतिम आदेश के तहत की गई, जिसे 30 अप्रैल 2025 को पारित किया गया था। तहसीलदार न्यायालय में ग्रामसभा बनाम अलसलफिया एजुकेशनल वेलफेय र सोसाइटी (प्रबन्धक मो० शमीम) के बीच उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 67 के तहत एक वाद (कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या: T202317630504784) चल रहा था। लेखपाल/राजस्व निरीक्षक की 22 नवंबर 2023 की आख्या में बताया गया था कि गाटा संख्या 337 (0.0253 हेक्टेयर) और गाटा संख्या 338 (0.016 हेक्टेयर) पर अवैध रूप से निर्माण किया गया है। न्यायालय ने रिकॉर्ड और स्थलीय निरीक्षण के आधार पर पाया कि विवादित भूमि बंजर खाते की है और सार्वजनिक उपयोग की है। आदेश में अलसलफिया एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी को बेदखल करते हुए 2,18,890 रुपये की क्षतिपूर्ति और 10 रुपये का निष्पादन व्यय वसूलने का निर्देश दिया गया था।
ध्वस्तीकरण अभियान के दौरान क्षेत्र में तनाव की स्थिति को देखते हुए एडीएम गौरव श्रीवास्तव, एसडीएम राहुल सिंह, तहसीलदार अजय कुमार, सीओ शोहरतगढ़ सुजीत राय, सीओ डुमरियागंज बृजेश वर्मा, सीओ इटवा सुबेंदु सिंह सहित 18 थानों की पुलिस फोर्स और 2 पीएसी कंपनियों को चप्पे-चप्पे पर तैनात किया गया था।
ग्रामीणों का आरोप: 90 साल पुरानी धरोहर, ‘सरकार नफरत फैला रही’

स्थानीय ग्रामीणों ने प्रशासन के दावों को सिरे से खारिज करते हुए दावा किया कि यह मस्जिद लगभग 90 वर्ष पुरानी और मदरसा लगभग 70 वर्ष पुराना है। उनका कहना है कि ये निर्माण आजादी से भी पहले के हैं। कुछ बुजुर्गों ने बताया कि ढेबरुआ थाने पर तैनात एक तत्कालीन मुस्लिम दरोगा ने इसे थाने के बगल में बनवाया था, जहां पहले सिपाहियों के घोड़े बांधे जाते थे। पुरानी चकबंदी से पहले, यह कच्ची दीवारों से बनी मस्जिद थी, जहां अंग्रेज शासनकाल के मुस्लिम सिपाही भी नमाज अदा करते थे। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि मदरसे में पहले मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे।
मस्जिद और मदरसा के ध्वस्त होने के बाद भावुक हुए ग्रामीणों ने रोते हुए आरोप लगाया कि ‘सरकार अल्पसंख्यक समाज खासकर मुस्लिमों के इबादतगाहों और तालीमगाहों को क्यों निशाना बना रही है?’उन्होंने कहा कि सरकार बहुसंख्यक समाज को खुश करने के लिए मस्जिद और मदरसे को ‘टारगेट’ कर तोड़ रही है, जबकि कई अन्य सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से मकान, दुकान, विभिन्न प्रकार के अतिक्रमण किए हुए हैं, लेकिन उन पर प्रशासन की नजर नहीं पड़ रही है। आक्रोशित ग्रामीणों ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘यह सरकार नफरत फैलाकर बांटना चाहती है लेकिन हम लोग बंटने वाले नहीं हैं।’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस मस्जिद और मदरसे के गिरने से गांव के कुछ बहुसंख्यक हिंदू भाइयों को भी कष्ट हुआ है, क्योंकि वे एक-दूसरे के धर्म का सम्मान कर साथ रहना चाहते हैं।
जमीन नियमित करने का ग्राम पंचायत का प्रस्ताव भी था लंबित

इस मामले में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ध्वस्त की गई इस भूमि को नियमित करने का प्रयास पहले भी ग्राम पंचायत स्तर पर किया गया था। 11 अप्रैल 2025 को ग्राम प्रधान इंद्रावती की अध्यक्षता में ग्राम पंचायत सिसवा उर्फ शिवभारी की एक आवश्यक बैठक हुई थी। इस बैठक में सदस्य मुकेश कुमार मौर्या ने प्रस्ताव रखा था कि मस्जिद (गाटा संख्या 337 के 0.020 हेक्टेयर) और मदरसे (गाटा संख्या 338 के 0.025 हेक्टेयर) की भूमि को उनकी पुरानी स्थिति और जनहित को देखते हुए उन्हीं के नाम किया जाए।
इस प्रस्ताव पर सदस्य जैनब पत्नी इकबाल ने सुझाव दिया कि ग्रामीण अजीमुल्लाह पुत्र फेरई गांव की अपनी निजी भूमिधरी गाटा संख्या 203 से 0.068 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि, जो मस्जिद और मदरसे के कुल क्षेत्रफल (0.045 हेक्टेयर) से अधिक है, ग्राम पंचायत को देने को तैयार हैं। ग्राम पंचायत ने इस पर सर्वसम्मति से मुहर लगाई थी और प्रस्ताव पारित किया था कि गाटा संख्या 337 व 338 पर मस्जिद व मदरसा का नाम अंकित किया जाए और अजीमुल्लाह द्वारा दी गई भूमि (गाटा संख्या 203 के 0.068 हेक्टेयर) को बंजर भूमि के रूप में दर्ज किया जाए। इसके अतिरिक्त, अजीमुल्लाह द्वारा एसडीएम शोहरतगढ़ के न्यायालय में भी भूमि विनिमय (एक्सचेंज) का एक वाद (वाद संख्या 2025, आवेदन दिनांक 14 मई 2025) दायर किया गया था, जिसमें वे अपनी भूमि के बदले मस्जिद और मदरसे की भूमि को नियमित कराने की मांग कर रहे थे। इस घटना ने क्षेत्र में प्रशासन की कार्रवाई, धार्मिक स्थलों से जुड़े भूमि विवादों और सामुदायिक सद्भाव पर एक नई बहस छेड़ दी है।